उपनिषद् अर्थात तत्ववेत्ता के चरणों में बैठकर जाने गए वो अपूर्व सूत्र जो व्यवहार में लाने पर अज्ञात के प्रति प्यास बन जाते हैं। उपनिषद् संसार के कुछ अनूठे शब्दों में से एक है , कुछ ही शब्द ऐसे हैं जो अज्ञात ओर प्रेम को अभिव्यक्त करने में सक्षम हैं, उपनिषद् वैसा ही शब्द है । अज्ञात ओर प्रेम यूँ तो पर्यायवाची हैं व्याकरण या व्यवहार की दृष्टि से नहीं अपितु अनुभव की दृष्टि से, अर्थात अगर अज्ञात की खोज में चले तो प्रेम में उतरना होगा ही और अगर प्रेम में उतारोगे तो अंततः अज्ञात तक पहुँच ही जाओगे। अघोर शब्द भी इसी कोटि का शब्द है, अघोर की परिभाषा लोग सहज ही अ + घोर अर्थात जो घोर नहीं है यह कह कर करते हैं , जबकि अघोर शब्द अपने अन्दर अज्ञात की प्रतीति समेटे हुए हैं , अघोर प्रकृति का समानार्थी भी हो सकता है कुछ अर्थो में, अहिंसा शब्द की कोटि में रख सकते हैं अघोर को, अहिंसा जहाँ गुण है वहीँ अघोर वो पद है वो ठौर है जहाँ पहुँचाने पर अहिंसा प्रेम सरलता सहजता स्वतः प्रगट हो जाते हैं ।
अब बात करूँ अघोर उपनिषद् की यह वो सूत्र हैं जो अघोर साधको के अनुभवों का वाणियो का सूत्रों का संकलन है, इन्हें अघोर सूत्र भी कहा जा सकता है, सूत्र अर्थात धागा, प्रेम की तरह महीन पर अज्ञात और हमारे बिच में सेतु बन जाने की सामर्थ्य सहित, सूत्र दुसरे अर्थो में बीज भी हो सकता है, संभवतः बीज शब्द ज्यादा उचित है, सूत्र सदा से बीज की तरह ही लघु रहा है उपनिषद् के सूत्र भी छोटे हैं , परन्तु लघु होते हुए भी विराट की संभावना सहित , जिस तरह बीज अपने अन्दर विशाल वृक्ष की संभावनाओं सहित जन्म लेता है उसी तरह यह सूत्र भी अनंत की अज्ञात की विराट कीप्रतीति कराने में सक्षम होते हैं, वस्तुतः यह सिर्फ इशारे हैं उस अज्ञात की और इंगित करने हेतु , उस मार्ग में चलने की प्रेरणा हैं , जो आपको अज्ञेय की प्रतीति करा दे।
लीजिये एक और अनूठा शब्द आ गया अज्ञेय अर्थात जिसे जाना ना जा सके, अज्ञात वो जिसे जाना ना गया हो पर अज्ञेय जिसे जाना ही नहीं जा सकता है, हाँ उसके प्रेम में पड़सकते हैं उसे अनुभव भी कर सकते हैं , वो हो सकते हैं पर उसे जान नहीं सकते, कह नहीं सकते , नेति नेति कहके जहा ऋषियों ने अपनी वाणी को विराम दे दिया और अनुभव के आनंद में लीन हो गए।
अघोर उपनिषद् ऐसे ही सूत्रों पर मेरे निजी विचार हैं जो मैं आपसे बांटना चाहता हूँ , जिन्हें मैंने अघोर पथिको सदगुरुओं के चरणों में बैठकर सूना है, कुछ को पढ़ा है , जो मुझे लगा वो मैंने मनन किया है और जब बात अनुभव में आ गयी तो उसे लिपिबद्ध करने बैठ गया। यह मैं कोई सूत्र पर टीका नहीं कर रहा ना मेरा आपसे ऐसा कोई आग्रह है की आप इसे माने , मेरी कोशिश है की इन सूत्रों पर आप विचार करे । संबवतःसंभवतः आप विचार करते करते उपलब्ध हो जाएँ या उपलब्ध कर ले और कुछ हो ना हो उस अज्ञात की थोड़ी प्रतीति हो ना हो प्रीती भी हो जाए आपके भीतर तो खुद को धन्य समझूंगा।
प्रेम तत्सत
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