Friday, December 17, 2010

मेरी बात ध्यान के आलोक में.

प्रिय मित्रों ,
क्षमाप्रार्थी हूँ ,कि इतने दिनों तक अनुपस्थित रहा। एक पारिवारिक कार्यक्रम में व्यस्त होने कि वजह से कुछ लिख नहीं पा रहा था। अब पुनः आरम्भ कर रहा हूँ । कुछ मित्रों ने ध्यान के विषय में जानने की अभीप्सा प्रगत की है। ध्यान के विषय में कुछ कहा जाना बहुत मुश्किल बात है, हाँ ध्यान में ले जाया जा सकता है। आपको प्रवेश दिलाया जा सकता है, आपको ध्यान में उतारा जा सकता है। ध्यान आज तक एक कृत्य की तरह आप सबके सामने लाया जाता रहा है। वस्तुतः ध्यान कृत्य है ही नहीं। ध्यान करने की चीज़ नहीं है, ध्यान कोई क्रिया नहीं है। ध्यान अक्रिया का दुसरा नाम है, कुछ करना सिखाया जा सकता है, पर कुछ ना करना सिखाना बहुत मुश्किल बात है, और ध्यान कुछ ना करने की यात्रा । ध्यान एक अवस्था है, एक स्थिति है, एक पड़ाव है। ध्यान के नाम पर जो कुछ कूड़ा करकट आज उपलब्ध है वो आपको भरमाने के साधन हैं। ध्यान की तैयारी की जा सकती है , पर वो सब ध्यान नहीं है। ध्यान मानो एक पाहुना है जिसके स्वागत के लिए आप कुछ मूलभूत तैयारी करते हैं। ध्यान बिलकुल एक खेती है जैसे एक किसान धरती को हल चलाकर साफ़ करता है, बीज डालकर इंतज़ार करता है फसल होने का, बिलकुल ऐसा ही है ध्यान। आपको वैसा वातावरण देना होता है और एक दिन ध्यान आपमें उतर जाता है। आप ध्यान को उपलब्ध कर लेते हैं। ध्यान करने की चीज़ नहीं है, ध्यान स्वतः होगा बस आप एकाग्र निर्विचार होने का प्रयास करते जाइए बस। निर्विचार शुन्य अवस्था का नाम ध्यान है। जब सारे विचार विलीन हो जाएँ , सारा आवागमन बंद हो जाए , तब ध्यान की यात्रा आरम्भ होती है। बचपन से हमें सिखाया जाता है ध्यान दो , मतलब किसी भी चीज़ के प्रति सजग हो जाओ, सजगता ध्यान की पहली सीढ़ी है। सजगता जब साक्षी भाव सहित होने लगेगी तो ध्यान की तरफ आपका दुसरा कदम बढेगा। साक्षी भाव का उदय तब होगा जब विचार विलीन होने लगेंगे। इसके लिए कोई विशेष प्रयास करने की आवश्यकता नहीं होती है, जब विचारों पे आप ध्यान देना बंद कर देंगे, उनके प्रति उदासीन होने लगेंगे तो धीरे धीरे साक्षी भाव का उदय होगा और आप धीरे से ध्यान में प्रवेश कर लेंगे। सिर्फ थोडा सा भीतर सरक जाना है आपको, आपकी सजगता किसी भी वस्तु , व्यक्ति,शब्द अथवा प्रतीक के प्रति हो सकती है। एकाग्रता से आपके विचार केन्द्रित होने लगते हैं , प्राण शक्ति केन्द्रित होने लगती है, और आप निर्विचार अवस्था की और बढ़ने लगते हैं। आपको ना अपने मन से लड़ना है ना अपने विचार प्रक्रिया से द्वन्द करना है, आपको सिर्फ इन्हें देखना है, सजगता सहित अर्थात जागते हुए, हम ज्यादातर काम बेहोशी में करते हैं, बुद्ध कहते हैं की कोई भी काम करो तो होशपूर्वक करो, जागते हुए करो, कोई भी स्वांस कोई भी क्रिया कोई भी विचार आपसे बिना मिले ना घट जाए, आप जो काम करे उसे पूरा का पूरा करे अर्थात जागते हुए करे। ध्यान जब उतरेगा तो नींद भी जागते हुए होगी अर्थात नींद में भी आपकी सजगता उपस्थित रहेगी। इसके लिए छोटे छोटे कदम उठाने होंगे, अपने दैनिक कार्यो के प्रति सजगता से आरम्भ करिए। राजयोग इस सजगता की पद्धति को प्रत्याहार कहता है, अंतर मौन जो राजयोग की पांचवी अवस्था है, इसी प्रक्रिया को साक्षी भाव भी कहा गया है, हमे कुछ नहीं करना है बस बैठ कर सजग होकर जो हो रहा है उसको देखना है। अगर आप साक्षी भाव से अपनी स्वांस के आवागमन को देखते हैं तो यह बुद्ध की आनापान सती योग पद्धति बन जाता है, जो विपश्यना के नाम से विख्यात है। ध्यान के विषय में और भी बातें आपसे होती रहेंगी। पर आज बस इतना ही.
प्रेम तत्सत

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