Friday, December 24, 2010

अपनी बात : मौन में वार्तालाप

आँखें बंद हो गई हमारी
तम में चमकी छवि तुम्हारी
कान बंद थे ह्रदय मौन था
करता अंतर में कोलाहल
नाद रूप में जाने कौन था।
छु कर देखो प्राण भ्रमण को
जी कर देखो उस स्पंदन को
अनहद बाजा सुनते जाओ
भूल जाओ जग के क्रंदन को।
प्रेम तत्सत

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