विष की बूटी जो पीते हैं, वो पाते अमृत खान हैं
गुरु पे जीते गुरु पे मरते, वो पाते भगवान् हैं।
ऊपर वाला कुछ नहीं होता, निचे का कर ध्यान रे
अपने अंतरतम में खोजो , मिल जाए भगवान् रे।
गुरु आदि गुरु मध्य है, गुरु को ही अंत जान रे
गुरु के अंतर गुरु के मंदिर, मिल जाएगा ज्ञान रे।
गुरु शक्ति गुरु ब्रम्ह है, गुरु ही शक्तिमान है
गुरु ही रचता खेला सारा, गुरु का ही ये विधान है।
गुरु नहीं होता हाड़ चाम का, बात पते की जान रे
तेरे अन्दर ही रहता है, कहलाता है प्राण रे।
तू उसका है वो तेरा है, तू उसकी संतान है
तुझको तेरी निज सत्ता का, करवाता वो ज्ञान है।
गुरु से निकला गुरु से उपजा, फिर गुरु में मिल जाना है
जिसने भी इश्वर को जाना, गुरु रूप में ही जाना है।
वो प्रगट ब्रम्ह कहलाता है, वो दबे पाँव से आता है
तेरे अंतर तम में वो, विश्वास की जोत जलाता है।
तुझको तुझसे मिलवाता है, तेरा दर्शन करवाता है
कहते हैं सब लोग इसलिए, वो तेरा बाप कहलाता है।
प्रेम तत्सत
@गुरु नहीं होता हाड़ चाम का, बात पते की जान रे
ReplyDeleteतेरे अन्दर ही रहता है, कहलाता है प्राण रे।
ध्रुव सत्य है।
"ऊपर वाला कुछ नहीं होता, निचे का कर ध्यान रे
ReplyDeleteअपने अंतरतम में खोजो , मिल जाए भगवान् रे"
आपको पढकर बहुत अच्छा लगा .. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका सवागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteशानदार पेशकश।
ReplyDeleteडॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित हिंदी पाक्षिक)एवं
राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
0141-2222225 (सायं 7 सम 8 बजे)
098285-02666
jisne bhi iswar ko jana guru rup me hai jai re...............wah...........badhai......................
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