" मुख में दाबे पूँछ है अपनी, शिव को लिए लिपटाय
गुरु कृपा से ऊपर जाके फिर शिव से मिल जाए"
" अज्ञात से मिलन की वो अनंत यात्रा गुरु रूपी नैय्या पर ही तय की जाती है।"
" हिमालय में कहीं भी शान्ति नहीं है, विश्व में कहीं भी कोलाहल नहीं है,
सब दृष्टि का भ्रम है, गुरु पद नख निहारो दृष्टि मिलेगी"
" जाप से स्वतः अंतर्मुखी हो जाता है व्यक्ति, विषयो के प्रति पहले अति उत्साहित और फिर अति उदासीन हो जाता है,
राजयोग इसे प्रत्याहार कहता है, यह सब स्वतः होता है, इसके लिए किसी अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है। "
" वो अंतर में प्रकाश लेकर तब आता है, जब वहां कोई ना हो ना दीन, ना दुनिया और ना आप खुद "
" आप सारी दुनिया को जानने चले हैं, पर खुद से बिलकुल ही अनजान हैं, गुरु आपसे आपका परिचय करवा देता है, आप अपने हो जाते हैं "
प्रेम तत्सत
hari ruthey guru thour hai
ReplyDeleteguru ruthey nahi thour
thus says kabir
nice post ..........
full of nector of guru bhakti......
छत्तीसगढ़ ब्लॉगर्स चौपाल में आपका स्वागत है।
ReplyDeleteहैप्पी ब्लॉगिंग.