Saturday, January 8, 2011

अपनी बात- अनुभूति के अंकुर

" गुरु ज्ञान नहीं देता, गुरु बीज देता है, जिसे भीतर बोने से ज्ञान स्वतः प्रस्फुटित होता है"

" विश्वास की मित्रता ना करे, विश्वास अक्सर टूट जाते हैं, श्रद्धा को अपने सहेली बनाए और फिर जाएँ अज्ञात को खोजने, श्रद्धा चाहे थोड़ी हो या ज्यादा वो आपको अज्ञात तक ले जाने में सक्षम है"

" विश्वास अधिकार सिखाता है, प्रभुता दिखाता है, श्रद्धा समर्पण सिखाती है, प्रभु दिखाती है"

" विरह अवसर है मिलन का, विरह आपकी श्रद्धा की कसौटी है, विरह प्रेम पथ में उत्प्रेरक का कार्य करता है, जब विरह असहनीय हो जाता है, सिवा मिलन के और कुछ भी नहीं सूझता है, तभी अज्ञात का अंतर में प्रवेश होता है"

" इश्वर को पाने के लिए लोग अपनी सुध बुध भी खो देते हैं, पर ई-स्वर को पाने के लिए, आपको अपने अलावा सबकुछ भूलना होगा"

" साधक पाने के लिए साधना करता है, अवधूत देने के लिए, देने के लिए पाना आवश्यक है, अवस्था की बात है "

" साधना में सिर्फ लेना ही लेना है, प्रेम में सिर्फ देना ही देना है "

" जिसे वो कुछ नहीं देता, उसे वो खुद को दे देता है, वो आपका हो जाता है"

प्रेम तत्सत

3 comments:

  1. आपने बहुत ही प्रेरणादायी विचारों का संकलन प्रस्तुत किया है ,साधुवाद !

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  2. ... behad prasanshaneey blog ... gyaanvardhak abhivyaktiyaan !!

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  3. कमल भाई, आपकी बातों में अनुभूति का सत्‍य झलकता है। हार्दिक बधाई।

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    क्‍या आपको मालूम है कि हिन्‍दी के सर्वाधिक चर्चित ब्‍लॉग कौन से हैं?

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